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अग्ने॒ त्वं पु॑री॒ष्यो᳖ रयि॒मान् पु॑ष्टि॒माँ२ऽअ॑सि। शि॒वाः कृ॒त्वा दिशः॒ सर्वाः॒ स्वं योनि॑मि॒हास॑दः ॥५९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॒। त्वम्। पु॑री॒ष्यः᳖। र॒यि॒मानिति॑ रयि॒ऽमान्। पु॒ष्टि॒मानिति॑ पुष्टि॒ऽमान्। अ॒सि॒। शि॒वाः। कृ॒त्वा। दिशः॑। सर्वाः॑। त्वम्। योनि॑म्। इ॒ह। आ। अ॒स॒दः॒ ॥५१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:59


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किनको पढ़ाने और उपदेश के लिये नियुक्त करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) उपदेशक विद्वन् ! जिससे (त्वम्) आप (इह) इस संसार में (पुरीष्यः) एक मत के पालने में तत्पर (रयिमान्) विद्या विज्ञान और धन से युक्त और (पुष्टिमान्) प्रशंसित शरीर और आत्मा के बल से सहित (असि) हैं, इसलिये (सर्वाः) सब (दिशः) उपदेश के योग्य प्रजा (शिवाः) कल्याणरूपी उपदेश से युक्त (कृत्वा) करके (स्वम्) अपने (योनिम्) सुखदायक दुःखनाशक उपदेश के घर को (आसदः) प्राप्त हूजिये ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - राजा और प्रजाजनों को चाहिये कि जो जितेन्द्रिय धर्मात्मा परोपकार में प्रीति रखनेवाले विद्वान् होवें, उनको प्रजा में धर्मोपदेश के लिये नियुक्त करें और उपदेशकों को चाहिये कि प्रयत्न के साथ सबको अच्छी शिक्षा से एकधर्म में निरन्तर विरोध को छुड़ा के सुखी करें ॥५९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

केऽध्यापनोपदेशाय नियोजनीया इत्याह ॥

अन्वय:

हे (अग्ने) उपदेशक विद्वन् ! (त्वम्) (पुरीष्यः) ऐकमत्यपालनेषु भवः (रयिमान्) विद्याविज्ञानधनयुक्तः (पुष्टिमान्) प्रशस्तशरीरात्मबलसहितः (असि) (शिवाः) कल्याणोपदेशयुक्ताः (कृत्वा) (दिशः) उपदेष्टव्याः प्रजाः (सर्वाः) समग्राः (स्वम्) स्वकीयम् (योनिम्) सुखसाधकं दुःखविच्छेदकमुपदेशम् (इह) अस्मिन् संसारे (आ) (असदः) आस्व। [अयं मन्त्रः शत०७.१.१.३८ व्याख्यातः] ॥५९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! यतस्त्वमिह पुरीष्यो रयिमान् पुष्टिमानसि, तस्मात् सर्वा दिशः शिवाः कृत्वा स्वं योनिमासदः ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - राजप्रजाजनैर्येऽत्र जितेन्द्रिया धार्मिकाः परोपकारप्रिया विद्वांसो भवेयुस्ते प्रजासु धर्मोपदेशाय नियोजनीयाः। उपदेशकाश्च प्रयत्नेन सर्वान् शिक्षयैकधर्मयुक्तान् सततमविरोधिनः सुखिनः सम्पादयेयुः ॥५९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व प्रजानन यांनी जितेंद्रिय, धर्मात्मा, परोपकारी विद्वानांना धर्माचा उपदेश करण्यासाठी नियुक्त करावे. उपदेशकांनी प्रयत्नपूर्वक सर्वांना शिक्षण देऊन सदैव विरोध सोडून समविचाराने राहावे व सर्वांना सुखी करावे.